रेलवे नई सुविधा देने
वाला है नई सुविधा याने प्रीमियम ट्रेनों में मनपसंद फिल्में और गाने देखने की
ऑनलाइन सुविधा इससे पूर्व भी रेलवे नई सुविधाओं में मनपसंद भोजन मनपसंद डिश सफर के
दौरान मसाज सुविधा आदि देने की घोषणा कर चुका है यह मस्तिष्क का दिवालियापन है की
रेलवे आम आदमी की जगह की समस्या को तो समस्या नहीं मानता उन्नाव उसको सुलझाने को
कोई सुविधा देना नहींमानता है वह तो गिनती में ही नहीं है
देश के महत्वपूर्ण बुद्धिजीवियो,अर्थशास्त्रियों
आदि सब की रायों के आधार पर देश की आर्थिक नीतियां तय की जाती
है परंतु वह जमीन से थोड़ा ऊपर उठकर हवा में होती हैं और तथ्यों के एक पहलू को ही
देखते हुए की जाती है और उसी के अनुसार आकलन किया जाता हैं फिर बुनियादी रूप से
गलत नीतियां बनायी जाती हैं
परन्तु सच पूछा जाए तो दुनिया
में क्या हो रहा है और दुनिया क्या कर रही है हमें उससे ज्यादा मतलब नहीं रखते हुए
अपने देश की आर्थिक स्थिति पर ध्यान केंद्रित करने की अधिक आवश्यकता, आवश्यक है जो वे नहीं कर रहे हैं अगर करते तो आसानी से हमें
ज्ञात हो जाता कि हमारी नीतियां बुनियादी रूप से ही गलत है हम कुछ बुनियादी गलतियां
कर रहे हैं जो लगातार बढ़ती जा रही हैं
हमारी सबसे बड़ी बुनियादी भूल
यह है कि हम दुनिया को देख कर अपने मानक, कदम, ताल ,दिशा, तो
तय कर
रहे हैं उन मापदंडों में अपने आप को खींचतान कर बैठा रहे हैं जिनके लिए बुनियादी
रूप से हम नहीं बने हैं हमारी संस्कृति, हमारी सामाजिक संरचना, हमारी आर्थिक परिस्थिति ,संरचना, चिंतन सब कुछ उनसे बुनियादी रूप
से ही भिन्न है हम झूठे मानव अधिकारों का ढोल बजाने वाले,सिर्फ
भौतिकता वादी देश नहीं है, हम जिंदा मानवतावादी देश हैं
व्यापार और व्यवसाय हमारे लिए द्वितीयक है, प्रथम व सर्वोपरिय है ,समाज के प्रति हमारा दायित्व
राष्ट्र, मानवता,इंसानियत के प्रति हमारा
दायित्व अगर हम, राष्ट्र
समाज या व्यक्ति समाज की मूलभूत दुख दर्द, जरूरतों आवश्यकताओं को अनदेखा, नजरअंदाज कर झूठी शान शौकत
प्रदर्शन, दिखावे,दूसरों की नकल कर भौतिक रंगरेली
और विलासिता में डूबते है और इन पर खर्च करते है और उल्टे उसके लिए कर्ज लेते हैं
जो हम ले रहे हैं तो हम अपराधी हैं और हम तो आर्थिक नीतियों में इतने दिग्भ्रमित
हैं की हमें जो विनाश की ओर ले जाए ऐसे अनावश्यक और आत्मघाती मोटे मोटे कर्ज हम ले
रहे हैं हम उसे विकास के लिए निवेश का नाम दे रहे हैं और भीख मांगने की तरह खुशामद
कर रहे हैं यह सब हमारे गलत बुनियादी आर्थिकचिंतन ,सलाहों की वजह से हो रहा हैं
राष्ट्र के जिन अति आवश्यक कार्यों के लिए
हमारे कदम उठने चाहिए उन पर हमारा कोई भी ध्यान नहीं है जिनसे समाज की समस्याओं का
कठिनाइयों का कोई हल मिल सके और खुशहाली आए पता नहीं क्यों दिग्भ्रमित होकर , प्रेरित होकर या अन्य किसी
एजेंडे के चलते हम ऐसे कार्य योजनाओं के लिए कदम उठा रहे हैं जो सीधे-सीधे हमारे
लिए जहर के समान विनाशी और आत्मघाती है इसमें हम अपनी कार्य क्षमता,योग्यता उपयोगिता, संसाधन ,श्रम और समय सब कुछ नष्ट करेंगे
और लगातार कर रहे हैं अगर हम अब भी नहीं समझे ,नहीं संभले तो समाज दुखी दुखी
हो जाएगा और हमारे हाथ में गर्म लाल सूर्ख दहकती हुई पगड़ी रह जाएगी जिसे हम अलग-अलग सिरो पर घुमा भी नहीं पाएंगे तब रोने और
गुलाम होने के अलावा हमारे पास दूसरा चारा नहीं रह जाएगा
मैं यहां पर रेलवे को उदाहरण के
रूप में प्रस्तुत कर रहा हूं क्योकि हम
सबसे बढ़े कदम रेल्वे में उठाने जा रहे है जिसका दुष्प्रभाव समूचे देश की सेहत पर हर
क्षेत्र में होने वाला है भारत में रेल देश की आम जनता के आवागमन का महत्वपूर्ण सार्वजनिक साधन है एक समय था जब यह मानकर चला जाता था कि
रेलवे को आम जनता के मुख्य आवागमन के साधन के रूप में सस्ते से सस्ता रखा जाएगा और
रखा भी गया बाद में धीरे धीरे इसमें कई तरह के परिवर्तन किए गए और इसे नफे
नुकसान के तराजू से तोला जाने लगा एक तरह से व्यवसायिकता का इसमें प्रवेश हुआ टिकट और माल भाड़े बार-बार बढ़ाए गए और
तरह-तरह के अनावश्यक प्रयोग किए गए धीरे-धीरे सरकार ने अपना फोकस हटाकर इसे अमीरों
व श्रेष्ठी वर्गों का साधन बनाने का कार्य प्रारंभ किया प्रथम श्रेणी का भी
विस्तार किया गया और उसे वातानुकूलित दो-तीन खंडो में बांट दिया गया इसके बाद
समूची वातानुकूलित ट्रेनें पटरियों पर एक के बाद एक कई लाई गई,आज भी लाई जा रही है
जो आधी खाली ही दौड़ती रहती है बड़े शहरों से बड़े शहरों की ओर छोटे और मध्यम
दर्जे के स्टेशनों पर उनके स्टाप नहीं रखे गए इन आधी
खाली ट्रेनो में भी आधे मुफ्त पास वाले अधिकारी नेता सफर करते हैं जनता मांग करती है सामान्य ट्रेनें बढ़ाई जाएं उनके
स्टॉपेज बढ़ाए जाएं उनमें बोगियां बढ़ाई जाएं तो उनमें एक ,दो
वातानुकूलित
बोगियां बढ़ा दी जाती है अर्थात जनता की मांग वास्तविक आवश्यकता को कभी गंभीरता से
लिया ही नहीं जाता और ना कभी उन पर गंभीरता से विचार किया जाता है.
कर्मचारियों के वेतन भत्ते तो लगातार बढाए गए परन्तु देखरेख
साफ सफाई आदि सभी लापरवाही की भेंट चढ़ती चली गई जिसे ना कोई देखने वाला था ना कोई
सुनने वाला था आज अमीरों की एक ए,सी ट्रेन
में मुश्किल से 200 - 300 यात्री यात्रा करते हैं जबकि
सामान्य ट्रेनों में 2 -3 हजार यात्री भी सफर करने के लिए मजबूर होते
हैं इसके बावजूद होने वाले घाटे के
लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जाता है फिर किराया बढाया जाता है और इससे प्राप्त अतिरिक्त आय को अमीरों की नई ट्रेन चलाने में लगाया जाता है अभी एक घोषणा और
की गई है की जिन स्टॉपेज पर कम रेवेन्यू जनरेट हो रहा है वहां के स्टॉपेज बंद कर दिए जाएंगे अब इस तरह के उपाय किए जा
रहे हैं (आप देखे कहाँ कृपण और कहाँ उदार हो रहे है ) नवाचार नकल के रूप में एक
उपाय किया गया था कौचो के टायलटों को बायो टॉयलेट में बदला गया आज वह बायो टॉयलेट सर के दर्द
बन गए हैं करोड़ों रुपया उसमें झोंका गया होगा परंतु उसका 1% भी रखरखाव नहीं कर पाए और वह
समूची ट्रेनों में इतने गंदे और भरे हुए मिलते हैं कि टॉयलेट जाना मुश्किल हो जाता
है एक और नवाचार उपाय किया गया था
एक्सीडेंट में बोगी एक दूसरे के ऊपर चढ़ जाती हैं अतः दो बोगी के बीच की कपलिंग के स्थान पर उन्हें सीधा जोड़ा
गया है जिसकी वजह से ट्रेनों में भारी झटके लगने लगे हैं
अब
रेल
मंत्रीजी ने घोषणा की है कि सरकार रेलवे में एक सौ साठ लाख करोड़ रुपए के निवेश की
योजना पर कार्य कर रही है इतना रुपया सरकार के पास नहीं है अतः कुछ क्षेत्रों को निजी
क्षेत्रों के लिए खोला जा सकता है निजी क्षेत्र के हाथों में कुछ सेक्टर के संचालन
का कार्य दिया जा सकता है और उनसे इसके लिए लाइसेंस फीस के रूप में मोटी रकम ली जा
सकती है अंतरराष्ट्रीय मानकों की तकनीक, निवेश, सार्वजनिक प्राइवेट साझेदार या
फिर टोल ऑपरेट ट्रांसफर मॉडल को अपनाना चाहते हैं क्योंकि रेलवे का विकास चाहते
हैं और सरकार अकेले इसमें निवेश करने में सक्षम नहीं है इसके अलावा सरकार कुछ प्रमुख शहरों की बुलेट ट्रेनों की
योजना पर भी काम कर रही है एक रूट की बुलेट ट्रेन का लागत खर्च एक लाख करोड़ से अधिक है अभी मुंबई अहमदाबाद रूट को परीक्षण में रखा है इसी पर काम चल
रहा है जापान ने इसके लिए कम ब्याज का ऋण भी दिया है जबकि आकलन यह है कि इनके किराए
विमान के किराए के समान होंगे तब इनमें कौन मूर्ख यात्रा करना चाहेगा परंतु देश पर
तो इस तरह से कई लाख करोड़ का कर्ज चढ ही जाएगा जिसका ब्याज भी देश कभी नहीं चुका
पाएगा तब और गलत नीतियों ,टेक्स बढ़ोतरी किराया जुर्माना बढ़ोतरी से करने के दमनकारी
प्रयास किये जाएगे परन्तु वह न सिर्फ नाकाफी होगा बल्कि ऊँट के मुंह में जीरे के
समान साबित होगा हाँ जनहित के सारे कार्य ठप्प पड़ जाएगे और देश ऐसा मकडजाल में फंस
जाएगा जिससे उबर ही नही पाएगा